इन दिनों अन्य विधाओं के अलावा व्यंग्य पर ज्यादा काम हो रहा है। यह खबर व्यंग्य यात्रियों के लिए अच्छी हो सकती है, क्योंकि व्यंग्य ही साहित्य में ऐसा धारदार हथियार है जो विसंगतियों, विद्रपताओं को एक झटके में ठीक करने का सामर्थ रखता है । साहित्य में सहिष्णुता की खोज तो पुरातन काल से होती चली आ रही है। सुमित ने भी इस खोज को ऐसे समय जारी रखा जब देश में असहिष्णुता का माहौल निर्मित करने का प्रयास किया जा रहा था। सुमित ने अपने अभिकथन में लिखा है कि नफे और जिले के काल्पनिक पात्र के माध्यम से खोज जारी रखी। व्यंग्य में ऐसे कथोपकथन वाले पात्रों के माध्यम से चोट करने का अच्छा प्रयास है ।
युवा व्यंग्यकार सुमित ने आधुनिक घटनाओं का समावेश अपने संग्रह में किया है चाहे वह साइबर युग के राजा, एक पत्र साक्षी और सिंधू के नाम, एक पत्र माइकल फेल्प्स के नाम, वायरल होने की चाहत या एक पत्र सन्नी लियाॅन के नाम जैसे एक से बढ़कर एक शीर्षकों के साथ घटित तथ्यों पर कटाक्ष किया है। जिसमें एक पत्र आमिर खान के नाम से तत्समय की परिस्थितियों पर बेबाक व्यंग्य किया है। असहिष्णुता की बात कहकर आमिर खान ने ही विवाद को जन्म दिया था और उनके इस विवाद को लेखक ने बड़ी ही संजीदगी से पकड़ लिया। इसके अतिरिक्त क्षणिक लाभ लेनेवाले बुद्धिजीवियों द्वारा लौटाए जा रहे सम्मान ढकोसले को भी उन्होंने सार्थक रूप से फोकस किया है।
इस व्यंग्य संग्रह में सामाजिक और ऐतिहासिक पात्रों का भी संयोजन किया है कंस का प्रतिशोध, आरक्षण महाराज, सच्ची श्रद्धांजलि, फूफा बनाने की परम्परा अच्छे व्यंग्यों में माने जा सकते है । एक बात और सुमित पक्के पुलिसवाले हैं इसीलिए समाज में घटित होनेवाली किसी भी घटना को उसी निगाह से देखकर वे व्यंग्य के सांचे में ढाल लेते हैं। यह उनका सराहनीय कौशल है। ठीक उसी प्रकार पुलिस समाज की पहरेदार होती है और व्यंग्यकार भी समाज का पहरेदार होता है । सुमित दोनों में सामंजस्य या यूँ कहें कि सहिष्णुता का भाव बनाकर चल रहे हैं। थूकाचाटी, गंदी बात, काश! हम भी सम्मान लौटा पाते, अगले जनम में मोहे ठुल्ला ही कीजो, एक पत्र रायते के नाम, नौकरी बचाव यंत्र, एनकांउटर, भैया आँखों से घर तक छोड़के आओगे आदि मुकम्मल व्यंग्य है। सुमित महानगरीय सभ्यता में विगलित होती परम्पराओं एवं सामाजिक सरोकारों को अपनी पैनी निगाह से पकडने का सार्थक प्रयास कऱ रहे है। जहाँ व्यंग्य में चारित्रिक एवं परिवेश गत परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए लक्ष्य पर चोट की है, वहाँ ऐसे पात्रों को सिवाय मन-मसोसकर रहने के अतिरिक्त और विचार करने के अलावा कुछ नहीं बचता, तभी तो व्यंग्यकार को समाज-सुधारक भी कहा गया है।
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