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लघु व्यंग्य : माफ़ कीजिएगा पिता जी

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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आज मैं रोज की तरह जल्दी नहीं उठ पाया। मजबूरी थी। रात को देर रात ड्यूटी करके लौटा तो देर तक सोना लाजिमी था। मतलब कि मैं अपनी नींद पूरी कर रहा था ताकि ड्यूटी पर न ऊँघूं और कर्मठता से अपने कर्तव्य का पालन कर सकूँ। जब मैं देरी से उठा तो मैंने रोज की तरह अपने माता-पिता के चरण छुए। हर बार की तरह माता-पिता ने मुझे मन ही मन आशीर्वाद दिया। फिर मैं नित्य कर्म करने चला गया। नहा-धोकर माँ के हाथों का बना स्वादिष्ट भोजन कर कुछ जरुरी काम निपटाकर मैं ड्यूटी को रवाना हो गया। ड्यूटी पर पहुँचकर सहकर्मी से पता चला कि आज तो पिता दिवस यानि कि फादर्स डे है। मुझे बहुत अजीब लगा कि क्यों नहीं मैंने आज अपने पिता चरणों को विशेष प्रकार से छुआ जिससे उन्हें आभास हो पाता कि आज उनका दिन है। कम से कम उन्हें तो मुझे बताना बनता ही था कि आज पिता दिवस है। आज सब लोग पिता दिवस मनायेगें। कोई वृद्धाश्रम में जाकर अपनी व्यस्त जीवनचर्या में से कुछ अमूल्य क्षण निकालकर अपने पिता के साथ फादर्स डे मनाकर अपने पुत्र होने के फ़र्ज़ को निभायेगा तो कोई भला मानव आज घर के एक कोने में अपने जीवन के अंतिम दिन गुजार रहे पिता को एक दिन ताज़ा और स्वादिष्ट भोजन खिलाकर अपने अच्छे बेटे होने का सबूत देते हुए मिल जाएगा। एक-दो सुसंस्कारी संतानें ऐसी भी होंगीं जो पिता दिवस के पावन अवसर का सदुपयोग करते हुए अपने पिता का अंगूठा इस्तेमाल कर उन्हें जमीन-जायजाद के झंझट से मुक्त कर पिता दिवस की सार्थकता सिद्ध करेंगीं। इन सबसे इतर मैं ड्यूटी करने के बाद आधी रात को घर पहुंचूंगा और सोते हुए पिता को जगाकर उनके चरण छूकर बोलूँगा, “माफ़ कीजिएगा पिता जी आज मैं पिता दिवस मनाना भूल गया।“ और मुझे यकीन है कि पिता जी मेरी इस बड़ी भूल पर मुझे माफ़ी देते हुए प्यार से मेरे सिर पर अपना हाथ फिरायेंगे। तब मैं खुश होकर अगले दिन ड्यूटी पर जाने के लिए बिस्तर पर जाकर फिर से ढेर हो जाऊंगा।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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