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व्यंग्य : सच्ची श्रद्धांजलि

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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-भाई नफे!

-हाँ बोल भाई जिले!

-आज कड़कड़डूमा कोर्ट में हुई गोलीबारी की खबर सुनी?

-हाँ भाई सुनी। हमारा एक और भाई राम कुमार व्यवस्था की भेंट चढ़ गया।
– पर भाई मामला क्या था?
-मामला अपराधियों की आपसी दुश्मनी का था।
-पर भाई मैंने सुना है कि पकड़े गए चार अपराधियों में तीन नाबालिग थे।
-हाँ भाई अपराधी गैंग हमारे देश के कानून का सदुपयोग करने के लिए बाल अपराधियों की सेवा ले रहे हैं। बाल अपराधी गंभीर अपराध करने के बाद यदि पकड़े भी जाते हैं तो बाल सुधार गृह में खा-पीकर मुस्टंडे होकर तीन साल में बाहर आ जाते हैं और सरकार से पुनर्वास के लिए सहायता भी प्राप्त कर लेते हैं।
-भाई मैंने सुना है कि संसद में कानून में संसोधन होने जा रहा है और अब गंभीर अपराध करनेवाले बाल अपराधियों को भी कड़ी से कड़ी सजा मिला करेगी।
-हाँ सुना तो मैंने भी है पर तुझे नहीं लगता कि यह काम बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था।
-भाई बात तो तू ठीक कह रहा है पर इतनी देरी आखिर कैसे हुई?
-विपक्ष को धरना देने से फुरसत मिलती तो सत्ता पक्ष कुछ काम कर पाता। विपक्ष का रवैया ऐसा है कि अगर कोई चिड़िया भी उसके ऊपर बीट कर जाए तो सत्ता पक्ष पर इल्जाम लगाकर सदन अवरुद्ध करने को तत्पर हो जाता है।
-और जनता की आशाएँ और देश के धन का राम नाम सत्य हो जाता है।
-हाँ भाई इस बार भी संसदीय सत्र का यही हाल हुआ समझो।
-भाई एक बात तो है कि अपराधियों की दिनोंदिन हिम्मत बढ़ती ही जा रही है।
-बढ़ेगी क्यों नहीं उनके माई-बाप भी कितने हैं। कोई अपराधी एक बार पकड़ा तो जाए जाने कितने एन.जी.ओ.और तथाकथित मानवाधिकार रक्षक इन दानवों को बचाने के आगे आ जाते हैं लेकिन जब कोई रक्षक मारा जाता है तो इन्हें मानो साँप सूँघ जाता है।
-हाँ भाई और मोमबत्ती गैंग भी बिल में घुस जाता है।
-उनकी मोमबत्ती समाज के रक्षकों के लिए नहीं बल्कि समाज के भक्षकों के समर्थन में जलती है।
-भाई माननीय महोदय ने राम कुमार के परिजनों को एक करोड़ देने की घोषणा की है।
-भाई माननीय महोदय कभी-कभार अपना वादा निभाते भी हैं यह स्वागतयोग्य है लेकिन वो अगर ये रुपया कोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था के सुधार में खर्च कर देते तो शायद ये नौबत ही नहीं आती। एक करोड़ रुपए मिलने से क्या रामकुमार के माँ-बाप को उनका बेटा, पत्नी को उसका पति या फिर बच्चों को उनका पिता मिल पाएगा?
-सच में भाई ये तो सोचनेवाली बात है और अभी उसकी उम्र ही क्या थी? अभी बारह-तेरह साल ही तो हुए थे पुलिस में नौकरी लगे हुए।
-खैर हम मातम मनाने के सिवा और कर भी क्या सकते हैं। वैसे भी पुलिसकर्मी तो कुछ माननीय महोदयों के अनुसार पिटने और मरने के लिए ही भर्ती होते हैं।
-जाने कब ये हालात सुधरेंगे?
-भाई हालात तभी सुधरेंगे जब जनता यह स्वीकारेगी कि समाज की सुरक्षा के उन्हें अपराधियों के वेश में भक्षकों की नहीं पुलिसकर्मियों के रूप रक्षकों की जरुरत है।
-क्या ऐसा हो पाएगा?
-भाई उम्मीद पर दुनिया कायम है।
-अच्छा भाई चला जाए।
-कहाँ चल दिया?
-भाई इलाके में गश्त लगाने जा रहा हूँ। कहीं जनता के साथ कोई अपराधी वारदात न कर जाए।
-चल मैं भी चलता हूँ। हमारी ओर से हमारे भाई रामकुमार को ये सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

http://sumitpratapsingh.com/

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