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व्यंग्य : अथ श्री बी.आर.टी. कॉरिडोर व्यथा

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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विश्व में एक देश है भारत। उस भारत देश में एक महानगर है दिल्ली। उसी महानगर के दक्षिणी भाग में स्थित अम्बेडकर नगर से मूलचंद तक सिमटी हुई एक सड़क है जिसे बस रैपिड ट्रांजिट कॉरिडोर अथवा बी.आर.टी. कॉरिडोर कहा जाता है। इसका निर्माण कुछ साल पहले हुआ था। इसके निर्माण का मकसद था जनता को सुविधा देना। पर ये तो आप और हम सभी भली-भांति जानते हैं कि सच्ची और अच्छी सरकार तो वही है जो जनता को अधिक से अधिक दुविधा में डाल सके और उस दुविधा को सुविधा का नाम देकर उसे दिग्भ्रमित कर सके। सो सुविधा के आवरण में लपेटकर दुविधा जनता को प्रदान कर दी गयी और 190 करोड़ रुपयों को स्वाहा करके बी.आर.टी. कॉरिडोर आस्तित्व में लाया गया। सुना है कि इसको निर्मित करने से पूर्व इसके बारे में काफी सर्वे और रिसर्च किया गया और इस प्रयोजन हेतु देश-विदेश की यात्राओं में सरकारी धन का सदुपयोग किया गया। तब जाकर इस कॉरिडोर का आरम्भ हो सका। इस स्वप्न को साकार करने में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने पूरी ईमानदारी से अपना कार्य किया। उनकी ईमानदारी की धाक राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए पवित्र घोटाले से खूब जमी थी। उन दिनों उनकी विशुद्ध ईमानदारी की चर्चा देश-विदेश में खूब जोर-शोर से हुई थी। पर मूर्ख जनता ने उन्हें उनकी विशुद्ध ईमानदारी के बदले चुनाव में इतनी बुरी तरह हराया कि बेचारी को कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। पर उनकी बॉस उनकी विशुद्ध ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुईं और उन्हें लगा कि ऐसे ईमानदार लोगों को उचित सम्मान मिलना चाहिए। सो उन्होंने उन्हें सम्मान देते हुए एक राज्य का महामहिम बना दिया। राष्ट्र मंडल का भारतीय रूप आँसू बहाता रहा और मुख्यमंत्री महामहिम का रूप धरकर मंद-मंद मुस्कुराती रहीं और उनके साथ उनका प्रिय साथी घोटाला भी खींसें निपोरता रहा। बहरहाल जैसे भारतीय जनता भटकाव की स्थिति में अक्सर रहती है वैसे ही शायद यहाँ भी भटकाव उत्पन्न होने लगा है। हाँ तो हम बात कर रहे थे बी.आर.टी. कॉरिडोर की। इस कॉरिडोर के बीच में एक और विशेष मार्ग बना दिया गया जिसे बस, एम्बुलेंस व सरकारी वाहनों के चलने हेतु निर्दिष्ट कर दिया गया। असल में सारा खेल तो नेताओं और नौकरशाहों को सुविधाजनक रूप से आवागमन हेतु रचा गया था। जब जनता के मस्तिष्क की ट्यूबलाइट चली और उसे असलियत समझ में आयी तो उसने आंदोलन का रास्ता अपनाया। पर आंदोलनों का हश्र तो आप सभी जानते ही हैं। इसमें सरकारी संपत्ति का तो राम नाम सत्य हो जाता है पर सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंगता। और धीमे-धीमे सरकारी संपत्ति की ऐसी-तैसी करते-करते हर आंदोलन की भी ऐसी-तैसी हो जाती है। वैसा ही इस आंदोलन का हाल हुआ। लोग विरोध पर विरोध करते रहे और सरकार विरोध को मुस्कुराते हुए देखती रही। आख़िरकार थक-हारकर लोग शांत हो गए किन्तु शांत होने तक उन्होंने बी.आर.टी. कॉरिडोर तिया-पाँचा कर डाला और अब ये कॉरिडोर जगह-जगह से क्षतिग्रस्त हो हाँफती सांसों से वाहनों के बोझ को ढोता रहता है। अपने ऊपर दिनों-दिन सुरसा की भांति बढ़ती जाती वाहनों की संख्या से ये अक्सर व्यथित रहता है। कॉरिडोर के बीच में बने विशेष मार्ग पर फर्राटे मारने व करतब दिखाने का शौक़ीन हर इंसान अपना वाहन दौड़ाते मिल जाता है, जिससे बसें, एम्बुलेंस व सरकारी वाहन डरते-डरते वहाँ से बचते-बचाते हुए निकलते हैं। उसके बगल के मार्ग में बाक़ी वाहनों के लिए बनी सड़क पर दिनों-दिन तेजी बढ़ती जाती कारों ने कब्ज़ा कर लिया है। दुपहियों ने अपनी रफ़्तार से समझौता न करके साइकिल चलाने के लिए बनी सड़क हथिया ली है। अपनी सड़क छिन जाने से दुःखी हो साइकिल सवारों ने पैदल पथ पर अपनी साइकिलों के पहिये दौड़ाने आरम्भ कर दिए हैं। अब पैदल चलनेवाला बेचारा इंसान विवशता से आकाश में उड़ान भरते हुए पक्षियों की ओर देखते हुए ऊपरवाले से प्रार्थना कर रहा है कि काश उसके भी पंख उग आयें ताकि वो भी अपनी मंज़िल तक पहुँचने का सुख प्राप्त कर सके।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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