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‘नो कमेंट’ पर कमेंट तो बनता है

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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38 व्यंग्य लेखों से सुसज्जित बंधु सुमित प्रताप सिंह की किताब ‘नो कमेंट’ पढ़कर खामोश रहना मुश्किल है और आम किताबों की तरह कुछ रचनाएँ पढ़कर रुक जाना भी मुश्किलसुमित की मौजूदगी इस बात का सुखद अहसास करवाती है कि शरद-परसाईं परम्परा के वाहक किसी भी शहर में किसी भी प्रोफेशन में क्यों न हों अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं सुमित के पास शरद जी की तरह विविध विषय चुनने का हुनर है तो यज्ञ शर्मा जी की तरह कम शब्दों में अपनी धारदार और जानदार बात कहने का कौशल भी है सुमित की लेखन यात्रा का पहला व्यंग्य लेख “मेरी माँ और गंगा स्नान की उनकी मन्नत” ही यह शुभ संकेत देता है कि एक व्यंग्यकार अपने अलग अंदाज और तेवर के साथ दस्तक देने के लिए तैयार है

मुझे सुमित का व्यंग्य ‘संपादक की पत्नी’ भी अच्छा लगा संपादक पर तो खूब लिखा गया है लेकिन पहली बार किसी व्यंग्यकार ने शायद संपादक जी की पत्नी को यथोचित सम्मान दिया है

हम सभी को ‘नो कमेंट’ का दिल खोलकर स्वागत करना चाहिए क्योंकि यह तो शुरुवाती दौर है जो उज्जवल भविष्य और शानदार लेखन की उम्मीदें जगाता है

सुमित को अनंत शुभकामनाएं!

  • श्री सुभाष काबरा

हास्यकवि, मंच संचालक एवं व्यंग्यकार,

मुंबई

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