सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
- 196 Posts
- 153 Comments
एक, दो, चार, पाँच रुपैया
तो हँसके दुकान पर
काम करनेवाले फटेहाल
और थके-थके से छोटू से
बोलता था सदैव ही
अबे यार छुट्टे का
क्या अचार डालना है
इनके बदले दे दे कुछ और
तो छोटू पकड़ा देता था
चॉकलेट, टॉफी या फिर
चटपटी सी कैंडी कोई
जिसे मुँह डालते ही
आ जाता था स्वाद
आज जब छोटू
जो मेरे संग-संग
बढ़ते-बढ़ते छोटू से
बड़ू हो गया था
बाकी बचे पाँच रुपयों के बदले
चॉकलेट पकड़ाकर
खड़ा ही हुआ था
बन गया फिर से
मेरे गुस्से का शिकार
अबे उल्लू समझा है क्या
इस चॉकलेट को कर वापस
और बदले में इसके
दे दे कुछ माचिसें
छोटू ने मुझे देखा
और मुस्कुरा दिया
शायद उसने मेरे भीतर के
उपजते पुरुष को देख लिया था।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
sumitpratapsingh.com
Read Comments