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मनोरंजक है नो कमेंट:अनिल समोता

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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सुमित प्रताप सिंह का व्यंग्य संकलन ‘नो कमेंट’ पढ़ रहा हूँ। किसी लेखक की औपचारिक साहित्य यात्रा की पहली सीढ़ी पर ही एक साल में उसके दो-दो व्यंग्य संग्रह प्रकाशित होना बड़ी बात है। एक अति विशेष बात जो देखने को मिली है वह है तारतम्यता । लेखक बहुत लम्बे वाक्यों के निर्माण में भी मूल कथन सम्पूर्णता, तारतम्यता व सार्थक समापन की कसौटियों पर खरा उतरा है। उदाहरण के तौर पर हम ‘नो कमेंट’ की ‘नो कमेंट’ रचना के निम्न वाक्य को लेते हैं : –
“रुखसाना खान की फ़ेसबुक पर फ़ोटोशॉप में तराशी प्रोफ़ाइल फ़ोटो और साक्षात दर्शन में ज़मीन आसमान के अन्तर के विषय में सोचना छोड़कर अपन ने उससे आग्रहपूर्वक पूछा, “रुखसाना जी, आपने आज हमारे घर की ओर रुख़ कैसे किया?”
इस पुस्तक की 38 ध्यानाकर्षक व मनोरंजक व्यंग्य रचनाओं में साधारण जन मानस से जुड़ी भाषा शैली, बीच- बीच में ठेठ देसी शब्दावली का आवश्यकतानुसार सफल प्रयोग, स्थानिक व सामयिक परिस्थितियों का स्वाभाविक वर्णन, सुन्दर विषयवस्तु चयन, भाषा सौन्दर्य, उचित अलंकार प्रयोग, व्याकरण नियमों की अनुपालना, सामाजिक कुरीतियों की सही पहचान व यथावश्यक शब्दाघात, समाज में प्रचलित रीति-रिवाज़ों का यथोचित मूल्याँकन, परिस्थिति विशेष की प्रतिबिम्बित प्रतिक्रिया की सुखद आश्चर्य जनक परिकल्पना और हर रचना के माध्यम से संदेश विशेष प्रेषण – यह सब सफल साहित्यिक यात्रा की मंगल शुरुआत का दीर्घ शंखनाद है।
सुमित आपकी सतत् सफलता की कामना है। ईश्वर सदा आपके साथ रहें और आप यूँ ही परम श्रद्धेय मातृभाषा की सेवा सुश्रुषा करते हुए उसे साहित्यिक लाभ प्रदान करते रहें।

श्री अनिल समोता
हिन्दी साहित्यकार
द्वारका, नई दिल्ली

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