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व्यंग्य : भोगम् शरणम् गच्छामि

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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इतने दिनों से हल्ला मचा रखा है। जाने योग न हुआ कि क्या हो गया। और ये समाचार चैनल इन्हें तो कोई न कोई मुद्दा चाहिए अपने चैनल की टी.आर.पी. बढाने के लिए। हमारी भी किस्मत ऐसी जो ऐसा प्रधानमंत्री मिल गया जो योग से प्रेम तो करता ही है साथ ही साथ उसे सारे जग में फैलाने के लिए भी कमर कस डालता है। कम से कम इसे हम बेचारों का ख्याल तो रखना चाहिए था, जिनकी इसने पिछले साल ही लुटिया डुबो डाली और हमें निठल्ला और बेकार बना डाला। हम बेचारों को साल भर हो गया मक्खियाँ मारते-मारते। एक तो हम बेचारे पहले से ही दुखी इतने हैं ऊपर से ये योग नामक शिगूफा छोड़ डाला। अब हम बेचारों को अपने-अपने घरों में मक्खियाँ मारना छोड़कर किसी न किसी समाचार चैनल के दफ्तर में जाकर मच्छर मारने पड़ेंगे और अपने ऊल-जलूल तर्कों की पोटली खोलकर अपनी जबान हिलानी पड़ेगी। हमारा ये प्रधानमंत्री भी न जाने कहाँ-कहाँ से नई-नई योजनायें ढूँढकर लाता है। कभी स्वच्छता अभियान चलाते हुए झाड़ू लगाने लगता है तो कभी आतंकवादियों को दामाद की श्रेणी से तड़ीपार करके उनका राम नाम सत्य करवा देता है। सोचिए तो सही एक वो भी दिन थे जब हर घर के बाहर कूड़ा आराम फरमाता हुआ मिल जाता था और अपने इलाके की सुन्दरता में चार चाँद लगा देता था। अब इस साफ़-सफाई के चक्कर में ये ससुरा कूड़ा भी जाने कहाँ लापता गया। इतने सालों से कूड़े की सुन्दरता और उसकी वो प्यारी सी बदबू की आदत पड़ गयी थी पर अच्छे दिन हमेशा थोड़े ही रहते हैं चाहे बेशक ये प्रधानमंत्री अच्छे दिनों का ढोल पीटता फिरे। कहीं ऐसा हुआ कि सभी लोग स्वच्छता प्रेमी हो गए तो जाने हम जैसे प्राणी जी पायेंगे भी कि नहीं। और वो दिन भी कौन भूला है जब हमारे सैनिक के सिर की फ़ुटबाल बनाकर पड़ोसी देश के सैनिक अपनी फिटनेस बनाने का काम करते थे और अब ये दिन देखने पड़ रहे हैं जब हमारा प्रधानमंत्री उनकी फ़ुटबाल बनाने की तैयारी कर रहा है। अब हमारा प्रधानमंत्री योग के माध्यम से हमारे मन का कूड़ा-करकट साफ़ करके हमें स्वस्थ करने की साजिश कर रहा है। अब ये कौन होता है ये तय करनेवाला कि किसे योग करना चाहिए और किसे नहीं।  भला क्या रखा है इस योग-वोग में। देशवासी अगर योग करने लगे तो उनका तन-मन स्वास्थ्य की ओर अग्रसर नहीं हो जाएगा। और जब देशवासियों के तन-मन स्वस्थ हो जायेंगे तो वे अपना अच्छा-बुरा जानने लग जायेंगे फिर राजनीतिक रूप से बेरोजगार हुए हम बेचारों का क्या होगा। क्या हमारा प्रधानमंत्री चाहता है कि हम बेचारे मरते दम तक मक्खियाँ ही मारते रहें। अच्छा ये योग का कार्यक्रम अपने देश तक सीमित रहता तब तो ठीक भी था पर हमारा प्रधानमंत्री तो इसे पूरे विश्व में फैलाने की साजिश रच रहा है।मतलब कि पूरे विश्व के लोगों के तन और मन का कूड़ा-कबाड़ा योग के माध्यम समाप्त करने का षड्यंत्र रचा गया है। यदि ये षड्यंत्र सफल हो गया और योग ने उनके मन-मस्तिष्क पर कुप्रभाव डालकर उसे स्वच्छ और स्वस्थ कर दिया तो विश्व में आपसी भाईचारा और सद्भाव नामक वायरस तेजी से फ़ैल सकते हैं फिर राजनीति की रोटियाँ सेकने हेतु चूल्हे कैसे चल पायेंगेषड्यंत्र  और उन चूल्हों के सहारे अपना पापी पेट भरनेवाले हम बेचारों का क्या होगा? इसलिए इस योग-वोग जैसी फालतू चीज को फैलने से रोकना बहुत ही आवश्यक है। जाने क्या-क्या आसन होते हैं इस योग में। अब सूर्य नमस्कार को ही लें। अपने स्वार्थ के लिए किसी के तलवे चाटने से बेहतर तो नहीं हो सकता ये सूर्य नमस्कार। इसलिए खासकर इस सूर्य नमस्कार का विरोध तो बनता ही है। योग का सीधा-सीधा अर्थ है जोड़ना और हम भारतीयों के शब्दकोष से ये शब्द तो आजादी से पहले ही अंग्रेजों की कृपा से गायब हो गया था। हमने इसे अपने शब्दकोष में शामिल करने का प्रयास देश आजाद होने के बाद किया तो था पर काले अंग्रेजों के होते हुए यह संभव नहीं हो पाया, सो हमें योग शब्द से ही आपत्ति है। इसलिए हम ‘योगं शरणम् गच्छामि’ मन्त्र की बजाय ‘भोगम् शरणम् गच्छामि’ मन्त्र’ को ज्यादा पसंद करते हैं। अब देखिये न ये जीवन चार दिनों का है और इसे चार दिन का मानकर ही भोगना चाहिए न कि योग के चंगुल में गिरफ्त होकर इसे आठ दिन का बना डाला जाए। खाओ-पियो, ऐश से जियो और संभव हो तो उधार लेकर भी घी पियो। क्या रखा है ज्यादा जीने में? वैसे भी कहावत है ‘वीर भोग्यं वसुंधरा’ अब हम वीर बेशक न हों पर वसुंधरा को भोगने की इच्छा तो रखते ही हैं और येन केन प्रकारेण अपनी भोगवादी संस्कृति को बचाए रखना चाहते हैं। पर ये योगप्रेमी प्रधानमंत्री योग को अपना ब्रम्हास्त्र बनाकर हमारी भोगवादी संस्कृति को जलाकर स्वाहा करना चाहता है। परमात्मा ने हमें ये कोमल सा शरीर दिया है और हम इसे योग की दुष्कर क्रियाओं के हवाले करके कष्ट प्रदान करें। न बाबा न। ये पाप कम से कम हमसे तो होने से रहा। हम तो भोगी थे, भोगी हैं और सदैव भोगी ही रहेंगे। वैसे आपको भी हमारी ये नेक सलाह है कि योग के चंगुल में न फँसें और ‘योगं शरणम् गच्छामि’ की बजाय ‘भोगम् शरणम् गच्छामि’ मन्त्र का जाप करते हुए हमारी तरह मस्त रहें।

लेखक: सुमित प्रताप सिंह

सुमित प्रताप सिंह की तीसरी पुस्तक ‘नो कमेंट’ पर आधारित साक्षात्कार देखने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें

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