सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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आज सुबह-सवेरे अचानक
मिल गया विश्वास राह में
लगा पूछने क्यों हटा
विश्वास उसपर से
मैंने उससे कहा
इतना तोड़ा है
जग ने विश्वास
कि विश्वास पर से
विश्वास डोल गया है
वह बोला विश्वास पर
इस बार विश्वास
करके तो देखो
मैंने धीमे से कहा
चलो ठीक है
एक अवसर और सही।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
sumitpratapsingh.com
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