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देशभक्ति (लघु कथा)

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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कमांडेंट साहब ने पूरे स्टाफ को ब्रीफ करते हुए कहा, “आज 26 जनवरी है, जो कि देश का राष्ट्रीय पर्व है। इस दिन पूरी कर्मठता से ड्यूटी करें और अपनी देशभक्ति का परिचय दें।” उन्होंने आगे कहा, “यह दिन देखने के लिए हमारे पुरखों ने बहुत सारी कुर्बानियां दीं। अनेक कष्ट सहे, तब जाकर हम सब स्वतंत्र हुए तथा आगे चलकर हमारा देश गणतंत्र बना। इतनी कठिनाइयों के बाद मिले इस विशेष दिन पर कोई ऊंच-नीच न होने पाये। आओ आज हम सब मिलकर यह शपथ लें, कि चाहे हमारी जान चली जाये लेकिन हमारे वतन की इज्जत मिट्टी में न मिलने पाए।” इतना कह कर कमांडेंट साहब पूरे स्टाफ को अलर्ट रहने का आदेश देकर अपने कमरे में चले गये। स्टाफ इधर-उधर बिखर कर आपस में बतियाने लगा, किन्तु एक युवा सिपाही उसी स्थान पर शांत खड़ा रहा। उसके मन पर कमांडेंट साहब के भाषण का अत्यधिक प्रभाव पड़ा था। उसने ठान लिया था, कि अपने देश की सेवा में यदि उसे प्राणों की भी आहुति देनी पड़े, तो वह पीछे नहीं हटेगा। देशभक्ति का दिल में जोश जगाने के लिए वह कमांडेंट साहब के प्रति बहुत आभारी था। वह कमांडेंट साहब का धन्यवाद करने के लिए उनके कमरे के भीतर गया। कमांडेंट साहब व उनका ऑफिस स्टाफ टीवी पर 26 जनवरी के कार्यक्रम देखने में मस्त था। सिपाही ने कमांडेंट साहब को सैल्यूट किया। इससे पहले वह कमांडेंट साहब से अपने दिल की बात कह पाता, टीवी में राष्ट्रगान आरंभ हो गया। वह सावधान होकर खड़ा हो गया और धीमे-धीमे स्वयं भी राष्ट्रगान गाने लगा। इस दौरान उसने देखा, कि कमांडेंट साहब अपने स्टाफ के साथ मजे से बैठकर बतियाते हुए टीवी देखने में मस्त रहे। युवा सिपाही कमांडेंट साहब व उनके स्टाफ की ऐसी महान देशभक्ति को देखकर मन ही मन गदगद हो उठा।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

इटावा, नई दिल्ली, भारत

जल्द आ रही सुमित प्रताप सिंह की तीसरी पुस्तक “नो कमेंट

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