सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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उस दिन मेट्रो में महिलाओं के लिए आरक्षित ये सीटें तब तक खाली रहीं जब तक कि महिलाओं इनपर आकर बैठ नहीं गयीं। अब इस दौरान ये महिला सीटें खाली क्यों रहीं? क्या लोगों ने आदरवश इन्हें खाली रहने दिया या फिर इस भय से यह खाली रहीं कि यदि इनपर बैठ भी जाएँ तो महिलाओं के आने पर इन्हें फिर खाली करना पड़ेगा। क्या हमें महिलाओं को अधिकार अथवा सम्मान देने के लिए कानूनी भय आवश्यक है? क्या हम अपने दिल में यह दृढ़ निश्चय नहीं कर सकते, कि हमें नारी जाति को हर हाल में सुरक्षा और सम्मान देना है।
ऐसा होगा कि नहीं?
आपके जवाब की प्रतीक्षा में “दामिनी” जाने कब से खड़ी है।
विनम्र श्रद्धांजलि दामिनी!
सुमित प्रताप सिंह
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