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कविता : मत ठुकराओ

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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आदरणीय बंधुजनों एवं मित्र जनों

सादर ब्लॉगस्ते!
आप सभी को दीपों के इस पर्व दीपावली की अशेष शुभकामनाएँ।आज दीपावली के शुभ अवसर पर आदरणीय माता-पिता के चरणों में बैठकर निम्नलिखित कविता का निर्माण हुआ है। आशा है आप सबको पसंद आएगी।

Mata aur pita

न न मुझको

अब नहीं रही है

स्वर्ग पाने की

वो बेकार सी चाहत

क्योंकि मैं तो पहले ही

रहता हूँ स्वर्ग सरीखी

माता की ममतामयी और

पिता की स्नेहिल छाया में ।

न न मुझको

अब नहीं भातीं

स्वर्ग की सुख-सुविधाएँ

न करता हूँ इच्छा

वहाँ के छप्पन भोगों की

मेरा मन तो रमता है

माँ के हाथ की

दाल और रोटी में ।

न न मुझको

अब नहीं रिझातीं

स्वर्ग की वो सुंदर परियाँ

मैं तो खो जाता हूँ

सीधी-सादी भोली सी

उस लड़की के भोले चेहरे में ।

न न मुझको नहीं सुहाता

देवों संग जा मिलना-जुलना

मेरा तो मन लगता है

अपने मित्र-सखाओं में

और बंधुओं की टोली में ।

न न मुझको

नहीं छोड़ना इस धरती को

मुझे तो भगवन

बार-बार भेजना यहीं

भारत की इस देव भूमि में ।

इसी की खातिर जियूँ

इसी की खातिर मरूँ हमेशा

न न मुझको

नहीं चाहिए सिवा इसी के

दे दो बस ये छोटा सा वर

मत ठुकराओ मत ठुकराओ।

© सुमित प्रताप सिंह

http://sumitpratapsingh.com/

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