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उनके अच्छे दिन

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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अपने एक परिचित हैं। मंत्रालय में क्लर्क के पद पर बोझित हैं। वो करीब 11 बजे ऑफिस पहुँचते थे। ऑफिस पहुँचकर दो-चार फाइलों से खेलने के उपरांत अपने जानकारों की खैर-खबर लेने के लिए सरकारी फोन का सदुपयोग आरम्भ कर देते। इतने में लंच हो जाता और वो लंच करके पार्क में सुस्ताने निकल जाते थे। कभी-कभी सुस्ताने की बजाय ताश भी खेल लिया करते। ऐसे ही न जाने कब 4 बज जाते। 4 बजते ही वो अपना बैग उठाकर ऑफिस से रफू-चक्कर हो लेते। सुबह-शाम और हफ्ते में शनिवार, रविवार के रूप में मिले समय को वो कहीं और सदुपयोग करते थे। वो एक लोकल अख़बार से पत्रकार के तौर पर जुड़कर उलटी-सुलटी ख़बरें उस अख़बार में छपवाकर लोगों से दलाली खाया करते थे और ज़िन्दगी के मजे लूटा करते थे। अब तक तो सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन जबसे मोदी जी ने सरकारी कर्मचारियों के काम के घंटे बढ़ाये और शनिवार का अवकाश समाप्त किया, तबसे वो सुबह 7 बजे घर से ऑफिस के लिए निकलते हैं और रात के 9 बजे वापस घर की चौखट पर वापस दस्तक दे पाते हैं। कोई उनसे उनका हाल पूछता है तो वो व्यंग्य करते हुए कहते हैं “अच्छे दिन आ गए”। बेशक उनके अच्छे दिन न आये हों, लेकिन मोदी जी ने नाकारों की नकेल कसने का जो अभियान आरंभ किया है उसे देखकर लग रहा है कि भारत के अच्छे आकर ही रहेंगे।


लेखक: सुमित प्रताप सिंह
sumitpratapsingh.com

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