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1993 ईसवी में रिलीज हुई फिल्म रुदाली तो याद ही होगी और उस फिल्म की रुदाली शनिचरी का किरदार, जिसे डिम्पल कपाड़िया ने निभाया था, भी अच्छी तरह याद होगा. वैसे तो पैसा लेकर किसी की मौत या किसी के दुःख पर मातम मनाना ताइवान की प्राचीन परंपरा है लेकिन हिंदुस्तान के कुछ भागों में अभी भी रुदालियों की जरूरत पड़ती रहती है. हालाँकि रुदालियों की संख्या धीमे होते जाने पर दुखी रहने वालों के लिए एक खुशखबरी है. अब तक देश को कई दशकों लूटने के बाद मोदी की आँधी में तबाह हुये लोगों को रुदाली के पेशे ने बहुत ही आकर्षित किया है और उन्होंने अपना पेट पालने के लिए रुदाली बनना समय की जरूरत समझ लिया है. वैसे तो फिलहाल ये नई रुदालियाँ अभी मोदी जी की हर नीति के विरोध के नाम पर रोने का निरंतर अभ्यास कर रही हैं, लेकिन यदि माँग आएगी तो ये कलेजा फाड़-फाड़कर रोने का मादा रखती हैं. नर और मादा, जवान और बुड्ढे हर रूप में रुदाली आपकी सेवा को तत्पर हैं. देखिए फिर ये मौका नहीं आएगा. तो जल्दी से बताइये रुदाली मंगता क्या?
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
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