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लो जी चुनावी मौसम समाप्त हुआ. इस मौसम ने अपना रंग जमकर खेला. पार्टियों के समर्थन के नाम पर अच्छे-खासे दोस्त भी दुश्मन बना डाले. मधुरभाषी भी अपनी राजनीतिक विचारधारा के समर्थन के नाम पर कटु वचन प्रेमी बनने को तत्पर दिखे. नई-नई गालियों व अभद्र वचनों के आविष्कार से चुनावी माहौल गरम रहा. इस दौरान भ्रष्टाचारी भी अपने को पाक साफ़ दिखाने को कर्मशील रहे और लुटेरों के व्यवहार से तो ऐसा लगा कि उन जैसा महात्मा इस दुनिया में न तो अभी तक पैदा हुआ है और न ही शायद कभी पैदा होगा. भारत माँ की अस्मिता से आए दिन खिलवाड़ करने वाले स्वयं को महान देशभक्त सिद्द करने को तत्पर दिखे. जनता में मौजूद कुछ लोगों ने अपनी गुलामी मानसिकता का परिचय देते हुये अपने मालिकों को सदा की भांति इस बार भी वोट देकर जता दिया कि लोकतंत्र जाये भाड़ में वे तो गुलाम थे, गुलाम हैं और सदैव गुलाम ही रहेंगे. जिन माननीय महोदयों को भ्रष्टाचारी और लुटेरे राजनीतिज्ञों से लाभ मिला और आगे भी मिलने की उम्मीद थी उन्होंने पालतू बनकर इन दुष्टों का भरपूर साथ दिया. खैर छोड़िये चूँकि अब चुनावी मौसम विदाई ले चुका है तो आइए सारे शिकवे-गिला भूलकर अपनी उसी पुरानी औकात में आकर अपनी दोस्ती फिर से कायम करते हुये मुस्कुराकर आओ अब प्यार की झप्पी पा लें.
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
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