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कल रात करीब 12 बजे किसी का फोन आया और जब तक मेरी आँख खुली फोन कट गया। मैंने सोचा शायद कोई जरुरतमन्द होगा, जो इतनी रात को फोन मिला रहा है। जब मैंने उस नंबर पर फोन मिलाया तो दूसरी ओर कोई महाशय थे, जिन्होंने एक पत्रिका में करीब 5 साल पहले छपे मेरे विचार पढ़े और पढ़ते ही ऐसे प्रभावित हुए कि बिना विलम्ब किये मुझे झट से फोन मिला दिया और गुज़ारिश करने लगे कि उनके भाई द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पत्रिका में रचनाएँ भेज दिया करें। उन्होंने कहा कि मैं उनके भाई का नंबर लिख लूँ ताकि उनसे बात करके मैं अपनी रचनाएँ उनके भाई को भेज सकूँ। मैंने उनसे विनम्र आग्रह किया कि अभी मुझे बहुत तेज नींद आ रही है और मैं इस स्थिति में नहीं हूँ कि उनके भाई का फोन नंबर लिख सकूँ कृपया मुझसे सुबह बात करें। अब महसूस हो रहा कि लेखन में फायदे के साथ-साथ कुछ घाटा भी है।
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