Menu
blogid : 4238 postid : 188

व्यंग्य: पुलिस पिटने के लिए है

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
  • 196 Posts
  • 153 Comments

कल मोनू रास्ते में मिला और मुझसे पूछा, कि भैया पुलिस में भर्ती होना चाहता हूँ। मैंने कहा अच्छी बात है तैयारी करो। उसने पूछा कि पुलिस में भर्ती होने के लिए क्या-क्या करना पड़ेगा? मैंने उससे बोला कि वह इस बारे में अपने पिता से क्यों नहीं पूछते, तो वह बोला, “पिता जी से पूछा था, लेकिन उन्होंने कहा कि वह खुद ही पुलिस की नौकरी से तंग आ चुके हैं और अब वह नहीं चाहते, कि उनका बेटा इस नौकरी में जाए, लेकिन मैं पुलिस में भर्ती होने का इच्छुक हूँ।आपसे निवेदन है, कि मुझे इसकी तैयारी का उपाय बताएँ।” मैंने कहा कि पहले तो भर्ती निकलने पर फॉर्म भरो, फिर टेस्ट की तैयारी के लिए दौड़ का अभ्यास करो, लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए प्रतियोगिता परीक्षा पर आधारित पत्र व पत्रिकाओं का अध्ययन करो और उनमें दिए गये प्रश्नों को हल करो तथा इन सबके साथ-साथ रोज पिटने का अभ्यास भी करो। मोनू ने चौंककर पूछा कि भैया पुलिस में भर्ती होने के लिए पिटने का अभ्यास क्यों? मैंने उसे समझाया कि समय बदल रहा है और समय के साथ-साथ जनता और पुलिस के संबंध भी निरंतर बदलाव की ओर हैं। अब पुलिस पर जनता इलज़ाम लगाती है, कि पुलिस उसकी सुरक्षा नहीं कर पाती और वह इसका गुस्सा पुलिस पर उतारती है परिणामस्वरूप पुलिस आए दिन पिटती है। बीते दिनों एक मंत्री महोदया ने भी बयान दिया था, कि पुलिस को पिटने के लिए ही वेतन दिया जाता है। शायद उन्होंने ठीक ही फ़रमाया। इसीलिए पुलिस कभी वकीलों से पिटती है तो कभी डॉक्टरों के हाथों। कल तक जिन अपराधियों के पुलिस का नाम सुनते ही हाथ-पाँव फूल जाते थे, वे अब किसी न किसी तरह पुलिस को पीटने की फ़िराक में रहते हैं। ऐसी बात नहीं है, कि पुलिस केवल जनता से ही पिटती है। कई बार पुलिस पुलिस से भी पिटती है। बड़ी पुलिस द्वारा छोटी पुलिस को बिना किसी गलती के कभी सरेआम गुलाटी मारने को मज़बूर किया जाता है, तो कभी जनता के बीच गालों पर थप्पड़ों को सहना पड़ता है। अंग्रेज चले गये, लेकिन पुलिस उनके द्वारा निर्मित कानून के जाल में अभी तक फँसी हुई है। अंग्रेजों ने ये कानून अपना शासन चलाने के लिए बनाया था, जो कि अभी तक पुलिस की छाती से चिपका हुआ है। पुलिस और जनता में आपसी सदभाव बने तो भला कैसे बने? जनता के बीच छोटी पुलिस ही रहती है, जो बड़ी पुलिस और देश के कर्ता-धर्ताओं और बेड़ागर्क कर्ताओं के दबाव में कार्य करती है। अब पुलिस और जनता में विरोध तो उत्पन्न होगा ही। पुलिस तो बंधी है कानून से और देश में लोकतंत्र है। लोकतंत्र में जनता के लिए जनता द्वारा जनता पर शासन होता है। जब जनता ही शासक है तो पुलिस ठहरी उसकी गुलाम इसलिए पुलिस तो जनता से पिटेगी ही। अब कहीं दारू पीते को टोक दे तो पुलिस पिटे। किसी के घर से कोई भाग जाए तो पुलिस पिटे। कहीं कोई कुकर्म हो जाए तो कुकर्मी तो मजे से घूमेगा, लेकिन कालर पकड़कर पीटा जाएगा पुलिस को। पुलिस अपराधियों को पकड़कर सलाखों के पीछे पहुँचा भी दे, तो भी उसका कुछ बाल-बांका नहीं बिगड़ता और कुछ रोज़ जेल के मजे लेकर अपराधी फिर से बाहर निकलकर अपराध में लिप्त हो जाता है। हालाँकि देश में पुलिस से अधिक जनता की ऐसी-तैसी करने वाले सैकड़ों विभाग हैं, जो जनता को नियमित तौर पर चूना लगाना अपना परम कर्तव्य समझते हैं, लेकिन जनता की पुलिस से खास दुश्मनी है और यह अपनी दुश्मनी पुलिस को पीटकर निभाती है। जनता पुलिस को पीटते समय यह भूल जाती है, कि पिटते-पिटते किसी रोज़ पुलिस उकता गई और एक दिन पुलिस ने ड्यूटी से उपवास ले लिया तो…?  मोनू बड़ी देर से मेरी बात को सुन रहा था। बात समाप्त होने पर बोला, “भैया पिटने का अभ्यास कबसे करने आऊँ?” मैंने उससे पूछा कि क्या वह वास्तव में पुलिस में जाना चाहेगा? तो वह बोला, कि उसके पिता ने भी पुलिस में पूरा जीवन गुजार दिया। अब वह भी पुलिस में जाना चाहता है। बेशक इसके लिए जनता के हाथों उसे रोज़ पिटना पड़े। कभी न कभी तो जनता पुलिस को  पीटते-पीटते होश में आएगी, कि वह अर्थात पुलिस जनता द्वारा जनता की सेवा करने के लिए ही पिट रही है। तब शायद एक नए समाज का निर्माण हो सके, जहाँ जनता और पुलिस मिल-जुल कर समाज की भलाई के लिए कार्य कर सकें। मैंने उसकी पीठ थपथपाई और मेरे मुँह से अचानक ही निकल पढ़ा, “तथास्तु!”

रचनाकार: सुमित प्रताप सिंह

http://facebook.com/authorsumitpratapsingh

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh