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चारों ओर इस बात की चर्चा है कि आजकल दिल्ली शहर गुस्सा है और दिल्लीवाले अपना गुस्सा सड़कों पर एक-दूसरे के हाथ-पाँव तोड़कर अथवा खून बहाकर निकाल रहे हैं. किन्तु सच यह है दिल्ली में एक नई प्रजाति उत्पन्न हो गई है जो पलक झपकते ही गुस्से से उबलने लगती है. हर घटना के होने के कारण होते हैं तो इस प्रजाति के गुस्सा होने के भी कुछ न कुछ कारण तो अवश्य होंगे. इनमें बीबी की मार, बॉस की फटकार अथवा गर्लफ्रैंड की दुत्कार आदि कोई भी कारण हो सकता है. समय के साथ दिल्ली ने भी खूब विकास किया इस विकास ने दिल्ली के जमीन के दाम दिन दूने, रात चौगुने कर दिये और कल तक जो बड़ी मुश्किल से अपनी रोजी-रोटी चलाते थे वो करोड़पति-अरबपति बन गये. जिस प्रकार कई दिनों से भूखे आदमी के सामने छप्पन भोग रख दिये जाएँ तो वो पगला जाता है. वैसा ही हाल जमीन बेचने से अनाप-शनाप पैसा मिलने से कुछ लोगों का हो गया है. वो अपने इस पैसे का सदुपयोग नशे आदि में कर रहे हैं और नशे में मदमस्त होकर अपना गुस्सा दिखा रहे हैं. जरूरी नहीं केवल ये ही कारण हों इस प्रजाति के गुस्से में आने के. हिंसात्मक फिल्में देखना, बेरोजगारी से उत्पन्न हताशा अथवा टूटते पारिवारिक संबंध भी इस गुस्से के कारण हो सकते हैं. यह प्रजाति देखने में तो कुछ-कुछ इंसानों जैसी लगती है किन्तु वास्तव में है यह राक्षसों से बदतर. सड़कों पर इस प्रजाति ने अपने गुस्से से जाने कितनों की गोद सूनी कर डाली और न जाने कितनों की मांग उजाड़ डाली. मजे की बात यह है कि जब भी दिल्ली पर कोई आतंकी हमला होता है अथवा यहाँ कोई बम फूटता है तो इस प्रजाति का गुस्सा उड़न छू हो जाता है और यह डर के मारे पूंछ दबाये किसी बिल में कई दिनों के लिए जाकर छुप जाती है.
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