Menu
blogid : 4238 postid : 51

लाल बत्ती का खेल (लघु कथा)

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
  • 196 Posts
  • 153 Comments

लाल बत्ती पर तोमर जी  ने  गाडी रोकी ही थी   कि एक लगभग 15 वर्षीय बच्चा आ धमका. उसके कपडे बहुत गंदे व जगह-२ से फटे हुए थे. उसकी सूरत को देखकर ऐसा लग रहा था   कि जैसे उसे  कई दिनों से खाना नसीब न हुआ हो. तोमर जी  को उस पर दया आ गयी व उन्होंने  एक दस रुपये का नोट जेब से निकाला व उस  लड़के की हथेली पर रख दिया. बच्चा उन्हें  दुआ देकर जाने ही वाला था  कि अचानक तोमर जी  को न जाने क्या सूझा कि उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुलाया व उससे कहा,” बेटा तुम शायद अनाथ लगते हो. क्यों न तुम मेरे साथ मेरे घर चलो.मेरे घर में मैं, मेरी पत्नी व एक बेटा है जो तुम्हारे जितना ही है. तुम हमारे घर में मेरी पत्नी के काम-काज में थोडा-बहुत हाथ बँटा दिया करना. हम तुम्हारे खाने-पीने, रहने व पढने की व्यवस्था कर देंगे व कुछ रुपया भी वेतन के रूप में दे दिया करेंगे.फिर तुम्हे यूं इस प्रकार दर-दर भटक कर भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी.” बच्चा तोमर जी की ओर  देख कर मुस्कुराया और बोला, ” बाबू जी ये सामने बत्ती देख रहे हो. ये सुबह से शाम तक करीब 500 बार लाल व हरी होती है ज़रा सोचिये यदि आप जैसा कोई भला आदमी 5 रुपये भी हर लाल बत्ती पर मुझे देता है तो हिसाब लगा कर देखिये कि पूरे दिन में मेरे कितने रूपये बने?” तोमर जी अवाक होकर उस बच्चे को देखने लगे. तभी बच्चा बोला, ” बाबू जी गाडी आगे बढाओ बत्ती हरी हो गई है.”

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh