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वो मेरा पहला प्यार

सुमित के तड़के - SUMIT KE TADKE
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उन दिनों स्कूल में गर्मियों छुट्टियां पड़ी थीं और मैं अपनी ननिहाल में था. एक दिन नाना के घर में हम सभी गप्प मार रहे थे कि तभी उसका आगमन हुआ. वह अपनी बहनों के साथ मेरी मौसी से मिलने आई थी. मासूम, भोला सा चेहरा व करतबी आखों संग  वह गजब रूप लिए हुए थी. उसे पहली बार देखा और एक नज़र में ही दिल उसी का हो गया. वह अक्सर नाना जी के घर आती थी और मेरे दिल की धडकनें बढ़ा कर चली जाती थी. अब दिल उसको ही खोजने में व्यस्त रहता था. जब भी आखें बंद करता था तो बस उसका ही मासूम व मुस्कुराता चेहरा दीखता था. जब भी वह दिखी तो उसकी आखों में आँखें डालकर(दूर से ही) पूछना चाहा कि उसके दिल में मेरे लिए कुछ है भी कि नहीं. उसके हाव-भाव को देख कर ऐसा लगा कि शायद वह भी मुझे चाहने लगी थी. एक दिन गाँव के बाग़ में टहल रहा था कि वह भी वहीं मिल गयी. मैं हिम्मत करके उससे बात करने के लिए आगे बढ़ा. वह मुझे देख कर शरमा रही थी. उससे कुछ ख़ास बात नहीं हो पाई. वह कौन से स्कूल में पढ़ती है?कौन सी कक्षा है? व थोडा- बहुत उसके दोस्तों के बारे में ही पूछ पाया.उसने बताया कि वह भी स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों में अपने नाना जी के पास आई थी. तभी हमने वहाँ किसी के आने की आहट सुनी और हम वहाँ से खिसक लिए. उस रात मैं सो नहीं पाया और उसके ही ख्यालों में खोया रहा. अगला दिन मेरे लिए बहुत बुरा था. किसी दुष्ट ने मेरे नाना जी को बीते कल की सारी घटना के बारे में खबर दे दी थी.  नाना जी गुस्से में मुझे भला-बुरा कहने में लगे हुए थे व मेरे मामा,मौसी आदि सभी उनका समर्थन कर रहे थे. मैंने जब उन्हें बताया कि मैं उस लड़की से प्यार करने लगा हूँ  तो मेरे दायें गाल पर नाना जी का ऐसा ज़ोरदार झापड़ पढ़ा कि दिन में ही अन्तरिक्ष दीखने लगा. जब मैं अन्तरिक्ष से धरती पर वापस लौटा यानि कि होश में आया तो मैंने नाना जी से पूछा कि आखिर उस लड़की से प्रेम करने में बुराई  क्या है तो नाना दांत पीसते हुए बोले, ” प्रेम करने में कोई बुराई नहीं है किन्तु जिस लड़की से तूने प्रेम किया है वह तेरे ही गोत्र की है. इस तरह वह तेरी बहन लगी और बहन से इस प्रकार का प्यार पाप है.” यह सुन दिल में कई वाट का जोर का झटका लगा. किन्तु प्रेम का कीड़ा मेरे मन में पैठ बना चुका था. अब ये गोत्र व जाति-पांति के बंधन मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते थे. बात उसके नाना तक भी पहुँच गई और उस मासूम का भी वही हाल हुआ जो मुझ गरीब का हुआ था. लड़की की बदनामी न हो इसलिए उसका बोरिया-बिस्तर बंधवा कर उसके परिवार संग वापस उसके शहर को रवाना कर दिया गया. उस दिन मेरी आँखों से गिरते आंसुओं को देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे मैंने कई बोरे प्याज छील लिया हो. खैर धीरे-धीरे समय बीता और बात आई-गई हो गई. एक वो दिन थे और एक आज का समय जब एक गोत्र में प्यार होने पर “ऑनर किलिंग” द्वारा प्रेमी जोड़ों का राम नाम सत्य कर दिया जाता है. अब जब कभी भी अकेले बैठे-बैठे उसकी याद आती है तो आसमान की ओर देखकर कहता हूँ “हे भगवान्! तूने बाल-बाल बचा लिया.”

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